एक महिला की जीवन में माँ बनना अभूतपूर्व एवं सुखद अहसास होता है। जिस दिन से उसे यह पता चलता है कि उसके भीतर एक जिंदगी पल रही है, वह मानसिक एवं शारीरिक दोनों रूप से उससे जुड़ जाती है। कोई भी महिला इस सुख से वंचित नहीं रहना चाहती। परंतु कई बार कई कारणों की वजह से महिलाओं को गर्भपात कराना पड़ता है। गर्भनिरोधक की विफलता, आर्थिक परिस्थिति, वैवाहिक स्थिति, केरियर बनाने की चाह, भ्रूण में कुछ अनुवांशिक त्रुटियां, बलात्कार आदि गर्भपात का मुख्य कारण हैं।
कई समस्याओं के चलते कुछ महिलाएं अचानक गर्भपात का शिकार हो जाती हैं। अचानक हुए इस गर्भपात के बाद महिला के शरीर में अत्यधिक कमजोरी आ जाती है, इसलिए महिला को अपना बहुत अधिक ध्यान रखना चाहिए। जिससे वह जल्दी से जल्दी सामान्य हो सके। परिवार के सदस्यों को भी महिला का शारीरिक और मानसिक रूप से अच्छी तरह से ध्यान रखना चाहिए। जितना अधिक वे खुश रहेंगी उतना जल्दी, उनके स्वस्थ होने की संभावना है।

गर्भपात होने के कई दिनों बाद तक महिलाओं को पीरियड्स (periods) नहीं होते। साधरणतया गर्भपात के 4 से 8 हफ्तों के बाद महिलाओं को पीरियड्स आने शुरू होते हैं। कुछ महिलाओं को इससे जल्दी भी पीरियड्स आ जाते हैं और कुछ को थोड़ा अधिक समय लगता है।

अबॉर्शन होने के बाद कई बार महिलाओं को ब्लीडिंग होती है, और वे उसे पीरियड्स समझ लेती हैं, जो कि पीरियड्स नहीं होते, इसे डॉक्टरी भाषा में पोस्ट अबॉर्शन ब्लीडिंग (Post Abortion Bleeding) कहा जाता है।

गर्भपात के बाद महिला को गर्भनिरोधक खाने की सलाह दी जाती है, यदि गर्भपात के बाद गर्भ निरोधक दवाई ना खाई जाएं, तो भी पीरियड्स आने में समय लगता है। अबॉर्शन के दौरान अथवा उसके बाद हुई ब्लीडिंग को महिलाएं पीरियड्स समझ लेतीं हैं, जो कि पीरियड्स नहीं, बल्कि गर्भाशय (uterus) की सफाई के दौरान निकाला गया भ्रूण (fetus) अवशेष होता है। यह रक्तस्राव या थक्कों के रूप में योनी के माध्यम से बाहर आता है।

गर्भपात के बाद शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर तेजी से घट जाता है जिससे पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं, इसी कारण गर्भपात के बाद पीरियड्स सही समय पर नहीं आ पाते।

गर्भपात के बाद होने वाला रक्तस्राव निर्भर करता है कि आपका मेडिकल अबॉर्शन हुआ है या सर्जिकल।

मेडिकल व सिर्जिकल अबॉर्शन दो तरह के होते हैं और दोनों ही प्रक्रिया में ब्लीडिंग होती है। दोनों ही तरह के अबॉर्शन के बाद ब्लीडिंग होना सामान्य है, और यह लगभग 2 हफ्ते तक रह सकती है।

मेडिकल अबॉर्शन

के बाद आने वाले पीरियड्स में रक्तस्त्राव समान्यता से अधिक (heavy flow) होता है।

सर्जिकल अबॉर्शन

के बाद आने वाले पीरियड्स नॉर्मल ही होते है।

अबॉर्शन के बाद ठीक होने में कितना समय लगता है-

अबॉर्शन के बाद ठीक होने में कितना समय लगेगा, यह निर्भर करता है कि भ्रूण कितना बड़ा था, यानि कि गर्भधारण की अवधि कितनी थी। इसलिए अबॉर्शन के बाद होने वाली शारीरिक कमजोरी को दूर करना बहुत जरूरी है। इसके लिए निम्न कुछ बिंदुओं का ध्यान रखें-

  • पर्याप्त मात्रा में पानी पिएँ
  • संतुलित आहार लें
  • 10 से 12 घंटे की नींद लें
  • भारी-भरकम सामान ना उठायें
  • सकारात्मक सोच रखें
  • कठिन व्यायाम ना करें
  • धीरे-धीरे टहलें
  • 5-6 घंटे में पेड अवश्य बदलें
  • पर्सनल हाइजीन का अतिरिक्त ध्यान रखें
  • स्वास्थ्य बिगड़ने पर डाक्टर से परामर्श अवश्य लें
  • जंक-फ़ूड खाने से परहेज़ करें

गर्भपात (अबॉर्शन) के कितने दिनों बाद पीरियड्स आते हैं?

सामान्यतः अबॉर्शन के 4 से 8 सप्ताह के बीच में पीरियड्स आ सकते हैं। पहला पीरियड्स सामान्य से अधिक हो सकता है, जिसमे चिंता की कोई बात नहीं है। परन्तु दूसरे माह के पीरियड्स से यह फ्लो सामान्य हो जाता है। यह पहले माह के पीरियड्स की तरह नहीं होगा जिसमें आपको अधिक दर्द (pain), ज्यादा रक्तस्त्राव एवं ख़ून के थक्के आये थे।

अबॉर्शन के बाद पीरियड्स ना आए तो क्या करें?

गर्भपात के बाद मासिक-धर्म में अनियमितता किसी भी एक कारण पर निर्भर नहीं होती, अपितु इसके बहुत से अन्य कारण भी हो सकते हैं।
मासिक-धर्म में अनियमितता अथवा देरी होने पर निम्न कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान दें –

  1. गर्भधारण – मासिक धर्म में अनियमितता और देरी का एक मुख्य कारण महिला द्वारा गर्भ -धारण हो सकता है। इसलिए असुरक्षित शारीरिक संबंध ( unprotected-sex ) से बचें, और यदि आपके मन में थोड़ा भी संदेह हो तो बाज़ार में उपलब्ध प्रेग्नेंसी किट ( pregnancy -kit ) लाकर अपना टेस्ट करें। टेस्ट सकारात्मक (पॉजिटिव) आने पर अपने जीवनसाथी से बात करें तथा उसके बाद डाक्टरी परामर्श के बाद ही कोई अगला कदम उठायें। बिना सोचे-समझे और किसी के भी सुझाव पर किसी तरह की दवाई न खाएं क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी हो सकता है।
  2. डाक्टरी परामर्श – गर्भपात के बाद यदि 4 से 8 सप्ताह के भीतर आपको पीरियड्स न आएं तो स्त्री रोग विशेषज्ञ (gynecologist) से इसकी जांच करवाएं। कई बार गर्भपात के बाद गर्भाशय में भ्रूण के अवशेष रह जाते हैं। यह भी पीरियड्स ना आने का एक बड़ा कारण हो सकता है। प्रायः यह मेडिकल अबॉर्शन में देखने को मिलता है। इसमें डाक्टर द्वारा गर्भाशय की पूर्ण सफ़ाई की जाती है।
  3. असंतुलित हार्मोन्स – हर एक महिला का शरीर अलग होता है जिसमें हार्मोन्स फ़्लो (hormones- flow) में आपको उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है। गर्भपात होना अथवा करवाना एक बहुत बड़ी प्रक्रिया है, जिससे महिला मानसिक एवं शारीरिक दोनों ही प्रकार से कमज़ोर हो जाती है। मानसिक संवेदनाएं दिमाग पर असर करती हैं, जिसका असर शरीर में हार्मोन्स पर देखने को मिलता है जो कि पीरियड्स में देरी का एक कारण बनता है। इसलिए ज़रूरी है कि आप चिकित्सकीय परामर्श लें और उनके द्वारा सुझाये टेस्ट करवाकर नियमित दवाई लें। इससे पीरियड्स में आया असंतुलन अथवा देरी ठीक हो जायेगी।
  4. आहार – गर्भपात के पश्चात डॉक्टर से परामर्श लेकर ही अपना आहार सुनिश्चित करें। बहुत से मामलों में अत्यधिक जंक-फ़ूड और तला-भुना खाना भी मासिक धर्म में अनियमितता या देरी का कारण बन सकता है। इसलिए संतुलित आहार लें। अपने खाने में प्रोटीनयुक्त दालें तथा हरी सब्जियों की मात्रा बढ़ाएं।
  5. दिनचर्या – गर्भपात के पश्चात शारीरिक व्यायाम और कसरत ( जिम इत्यादि ) को कुछ दिनों के लिए विराम दें। हो सके तो कुछ दिनों के लिए अपने कार्यस्थल से छुट्टी लेकर घर पर ही आराम (bed-rest) करें। भारी -भरकम सामान उठाने तथा धकेलने से परहेज करें।
  6. तनाव – गर्भपात के पश्चात महिला का तनाव लेना स्वाभाविक है। इससे बचने के लिए विचारों को सकारात्मक रखें तथा अच्छी किताबें पढ़ें। परिवार के साथ समय बिताएं तथा अकेलेपन से बचें। प्रिय लगने वाला संगीत सुनें।

गर्भपात के बाद माहवारी में देरी होना स्वाभाविक है इसलिए ऊपर बताई बातों पर ध्यान दें, घबराएं नहीं। किसी भी प्रकार का संदेह होने पर स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलें।